Monday 15 July 2013



[15-07-2013]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-तुम्हें अपने ही तन-मन-धन से भारत को पावन बनाने की सर्विस करनी है, इस भारत को माया रावण से लिबरेट करना है''
प्रश्न:- जो बच्चे देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते हैं वह किस फिक्र से छूट जाते हैं?
उत्तर:- इस पुराने शरीर का कर्मभोग जो घड़ी-घड़ी भोगना के रूप में आता है, हिसाब-किताब चुक्तू करना पड़ता है इसकी फिक्र से वह छूट जाते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि में रहता-अभी तो हमें पुराने हिसाब-किताब चुक्तू कर कर्मातीत बनना है। फिर आधाकल्प के लिए किसी भी प्रकार का रोग हमारे पास आ नहीं सकता। बाबा ऐसी फर्स्टक्लास नेचर-क्योर करते हैं जो बीमारी का नाम-निशान नहीं रहता।
गीत:- तुम्हीं हो माता, तुम्हीं पिता हो........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भारत को आबाद करने में अपना तन-मन-धन सब सफल करना है। बहुत-बहुत मीठे बन सेवा करनी है। सचखण्ड स्थापन करने के लिए सच्चा बनना है।
2) विजय माला में पिरोने लिए याद की रेस करनी है। चलते-फिरते कार्य करते बाप-टीचर-सतगुरू को याद करना है।
वरदान:- दृढ़ संकल्प द्वारा व्यर्थ की बीमारी को सदा के लिए खत्म करने वाले सफलतामूर्त भव
सफलता मूर्त बनने के लिए सभी बच्चों को यही एक दृढ़ संकल्प करना है कि न कभी व्यर्थ सोचेंगे, न कभी व्यर्थ देखेंगे, न व्यर्थ सुनेंगे, न व्यर्थ बोलेंगे और न व्यर्थ करेंगे...सदा सावधान रह व्यर्थ के नाम निशान को भी समाप्त करेंगे। यह व्यर्थ की बीमारी बहुत कड़ी है जो योगी बनने नहीं देती, क्योंकि व्यर्थ है विस्तार, विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को समेटने की शक्ति द्वारा सार स्वरूप में स्थित करो तब सहजयोगी, सफलतामूर्त बनेंगे।
स्लोगन:- दूसरों को कहकर सिखाने के बजाए करके सिखाने वाले बनो।

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