मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम आपस में भाई-भाई हो, तुम्हें रूहानी स्नेह से रहना है, सुखदाई बन सबको सुख देना है, गुणग्राही बनना है''
प्रश्न: आपस में रूहानी प्यार न होने का कारण क्या है? रूहानी प्यार कैसे होगा?
उत्तर: देह-अभिमान के कारण जब एक दो की खामियां देखते हैं तब रूहानी प्यार नहीं रहता। जब आत्म-अभिमानी बनते हैं, स्वयं की खामियां निकालने का फुरना रहता है, सतोप्रधान बनने का लक्ष्य रहता है, मीठे सुखदाई बनते तब आपस में बहुत प्यार रहता है। बाप की श्रीमत है - बच्चे किसी के भी अवगुण मत देखो। गुणवान बनने और बनाने का लक्ष्य रखो। सबसे जास्ती गुण एक बाप में है, बाप से गुण ग्रहण करते रहो और सब बातों को छोड़ दो तो प्यार से रह सकेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से ऐसा लॅव रखना है - जो एक बाप से ही सदा चिटके रहें। दिन रात बाप की ही महिमा करनी है। खुशी में गदगद होना है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह सतोप्रधान बनना है। कभी भी मिया मिट्ठू नहीं बनना है। बाप के समान मीठा बनना है।
वरदान: संगमयुग की हर घड़ी को उत्सव के रूप में मनाने वाले सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न भव
कोई भी उत्सव, उमंग उत्साह के लिए मनाते हैं। आप ब्राह्मण बच्चों की जीवन ही उत्साह भरी जीवन है। जैसे इस शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही उमंग-उत्साह है इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। लेकिन श्वांस की गति सदा एकरस, नार्मल होनी चाहिए। अगर श्वांस की गति बहुत तेज हो जाए या स्लो हो जाए तो यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। तो चेक करो कि ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल अर्थात् एकरस है!
स्लोगन: सर्व शक्तियों के खजाने से सम्पन्न रहना-यही ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता है।